कोरोना : सकारात्मक परिप्रेक्ष्य
यह पूरा विश्व परिवर्तनशील है, किसी देश , राष्ट्र, समाज की विकास द्वंद्वात्मक पद्धति से होकर गुजरती है । कोई राष्ट्र विकास करता है तो प्रकृति ऐसा होने देती है लेकिन विकास के नाम पर यदि हम प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे तो प्रकृति अपने आप को संतुलित करने हेतु अपना कहर तो दिखाएगी।
आज पूरा विश्व covid-19 के चपेट में आ चुका है कहीं ज्यादा तो कहीं कम। इस महामारी ने लाखों की जान ले चुकी है और न जाने अभी और कितनों की जान लेनी बाकी है। ऐसे में सभी covid- 19 को नकारात्मक परिप्रेक्ष्य से देख रहे हैं और ज़ाहिर सी बात है कि देश का आर्थिक व्यवस्था बिगड़ जाने से और इतने लोगों की जान जाने से लोगों का नज़रिया कुछ ऐसा ही होगा।
लेकिन यदि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से इस समय की समीक्षा की जाए तो प्रकृति खुद को संतुलित करने में लगी हुई है। यमुना नदी का प्रदूषण लगभग 30% तक कम हो गया, जहां इंसानों ने शहर व जंगलों के बीच दायरे बना दिए थे, इस lock-down ने सभी जीव जंतुओं के लिए पूरा पर्यावरण खोलें दिया है, दिल्ली का वायु प्रदूषण भी काफी कम हुआ है । अर्थात प्रकृति सबके लिए समान है और हमें समझने की जरूरत है कि हम विकास में अंधा होकर अपने पृथ्वी के जीव जंतुओं को तकलीफ दे रहे हैं।
करोना को हम एक और दृष्टिकोण से देख सकते हैं , प्रकृति के गतिशील होने के नियम से ।एक समय था जब स्पेन जैसे देशों का पूरे विश्व में वर्चस्व था वक्त बदला फिर ब्रिटेन, France, Germany आदि का वर्चस्व आ गया , और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रूस का वर्चस्व रहा। अब देखना है कि कोरोना से निबटने के बाद विश्व में कौन सा देश सामाजिक एंव आर्थिक रूप से शक्तिशाली होकर उभरता है?